आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(ध)
धधक उठी तन मन प्राणों में, ज्ञान यज्ञ की ज्वाला है।
होगा युग निर्माण नया, अब कौन रोकने वाला है।।
धन थोरो इज्जत बड़ी कहि रहीम की बात।
जैसे कुल की कुलवधू, चिथड़न माहि समात॥
धन-धन कहत न होत कोउ, मुझि देखु धनवान।
होत धनिक तुलसी कहत, दुखित न रहत जहान॥
धनबल जनबल बाहुबल नहिं काऊ के घाट।
एकहिं एका बल बिना सब बल बारा बाट॥
धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पियासो जाय॥
धनि रहीम गति मीन की, जल बिछुरत जिय जाय।
जियत कंज तजि अनत बसि, कहा भौंर को भाय॥
धन्य हुई उसकी तरुणाई, जिसने जल जलकर सारे जग-
तीतल में नव ज्योति जलाई, धन्य हुई उसकी तरुणाई॥
धन्य है जिन्दगी यह हमारी, नाथ ! पाकर सहारा तुम्हारा।
मेरे भगवन ये जीवन हमारा, कर्म-चिन्तन है सारा तुम्हारा॥
धरती जानति आप गुण, कहीं न होती डोल।
तिल-तिल गरुवी होती, रहति ठिकों की मोल॥
धरनि धेनु चारित-चरत, प्रजा सुबच्छ पेन्हाइ।
हाथ कछू नहिं लागि है, किये गोड़ की गाइ॥
धरे ध्यान गणन के माहीं, लाये वज्र किवार।
देखि प्रतिमा आपनी, तीनिऊँ भये निहाल।।
धर्म वस्तुतः एक है, किन्तु उसके रूप अनेक।
देत सीख समाज को, आर्य समाज विवेक॥
धर्म से हम नहीं रख सके वास्ता, किन्तु लड़ते रहे रास्तों के लिए।
प्रेम का पाठ सीखा नहीं धर्म से, दी दुहाई घृणित हादसों के लिए॥
धनवान गये बलवान गये, गुणवान गये मस्ताने।
ये चार दिन की जिन्दगी है, भूल ना दीवाने॥
धूलि धरत नित सीस पै, कहु रहीम केहि काज।
जेहि रज मुनि-पतनी तरी, सो ढूंढ़त गजराज॥
धौंकी डाही लाकड़ी, वो भी करे पुकार।
अब जो जाय लोहार घर, डाहै दूजी बार॥
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